
हरिद्वार। कुछ कांवड़ियों ने कांवड़ यात्रा को शक्ति प्रदर्शन का माध्यम बनाकर रख दिया है। कोई 281 किलो गंगाजल लेकर जा रहा है और कोई 201 किलो गंगाजल लेकर जा रहा है, ऐसे एक दो नही बल्कि हजारों की तादात में कांवड़ियें इस समय सड़कों पर नज़र आ रहे हैं। कुछेक मामले ऐसे भी नज़र आ रहे हैं जिनसे वजन सहन नहीं किया जा रहा है, बावजूद इसके एक हठ नज़र आ रही है। पहले इस प्रकार की कांवड़ इक्का दुक्का ही नज़र आती थी लेकिन अब इनकी तादात काफ़ी बढ़ चुकी है जोकि इन कांवड़ियों के लिए भी हानिकारक है।
भारी भरकम गंगाजल लेकर जाने कावड़ियों की शुरुआत कावड़ यात्रा से काफी दिन पहले हो चुकी है, कावड़ यात्रा में भी बड़े-बड़े लोटों में गंगाजल ले जाने का चलन अभी भी है। पिछले करीब दो-तीन साल से ही यह चलन चल पड़ा है कि कांवड़िये एक लाठी के दोनों और भारी-भारी लोटो में गंगाजल भरकर गंतव्य की ओर रवाना हो रहे हैं। हालांकि इतने भारी भरकम मात्रा में गंगाजल ले जाने का ना तो कोई पुराणों में जिक्र है और ना ही यह सब करना उचित प्रतीत होता है। संत समाज का कहना है कि इस प्रकार की भारी भरकम कांवड़ ले जाना ठीक नहीं है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्र पुरी जी महाराज का कहना है कि भगवान शिव दो बूंद गंगाजल में भी तृप्त हो जाते हैं और शिव भक्तों को आशीर्वाद देते हैं, इसलिए इस प्रकार की भारी भरकम कावड़ ले जाना और औचित्यहिनहै। शिवरात्रि पर गंगाजल से भगवान शिव का जलाभिषेक करने से भगवान प्रसन्न होते हैं, जो लोग इतनी भारी भरकम कांवड़ ले जा रहे हैं यह उनके स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है। उन्होंने अपील की है कि कांवड़ियों को अपने स्वास्थ्य से खिलवाड़ नहीं करना चाहिए और सामान्य कावड़ ले जाकर भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक करना चाहिए।