
हरिद्वार। ( रूपेश वालिया ) तीर्थ नगरी हरिद्वार में रविवार को मनसा देवी पैदल मार्ग पर होने वाली भगदड़ की घटना कोई पहली दुर्घटना नहीं है। इससे पहले भी कई बार हरिद्वार में भगदड़ की घटनाएं हो चुकी है जिसमें सैकड़ो लोग काल के गाल में समा चुके हैं। हर बार दुर्घटना होने के बाद सरकार जांच के लिए आयोग का गठन करती है लेकिन नतीजा सिफ़र ही रहता है। इतिहास में किसी दुर्घटना के जिम्मेदार को कोई सजा मिली हो ऐसा कभी सुनने में नहीं आया है। उन घटनाओं के बाद भी कोई सबक नहीं लिया गया जिसका परिणाम यह रहा कि रविवार की सुबह मनसा देवी मंदिर की ओर जाने वाले पैदल मार्ग पर करंट होने की सूचना से भगदड़ मच गई, भगदड़ के दौरान 8 लोगों की मौत हो गई और करीब तीन दर्जन से ज्यादा घायल हैं। गंभीर रूप से घायलों को हायर सेंटर रेफर कर दिया गया जबकि सामान्य रूप से घायलों का उपचार जिला चिकित्सालय में चल रहा है। हरिद्वार में होने वाली भगदड़ की घटनाओं के इतिहास की यदि बात करें तो वर्ष 1912 में हरिद्वार में कुंभ के दौरान भगदड़ होने से सात लोगों की मौत हो गई थी। साल 1966 में हुए कुंभ में सोमवती अमावस्या स्नान पर भगदड़ मच गई थी जिसमें 12 लोगों की मौत हुई थी। 1986 में हुए कुंभ में भी भगदड़ से 52 लोगों की मृत्यु हुई थी और श्रद्धालु नाहक ही काल के गाल में समा गए थे। 1986 में हुए कुंभ में भी सोमवती स्नान पर ही भगदड़ होने से 22 लोगों की मौत हो गई थी। साल 2010 में हुए कुंभ में भगदड़ होने से सात लोगों की मौत हुई थी जबकि कई लोग घायल हो गए थे। वर्ष 2011 में शांतिकुंज द्वारा हरिद्वार में गायत्री कुंभ का आयोजन किया गया था जिसमें भगदड़ होने से 20 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। हर बार दुर्घटना के बाद आयोग का गठन तो होता है लेकिन नतीजा सिफ़र रहता है।हरिद्वार मेलों और गंगा स्नान में भगदड़ का पुराना इतिहास रहा है लेकिन सिस्टम ने कोई सबक नहीं लिया जिसका परिणाम रविवार को हुई भगदड़ के रूप में सामने आया। जिसमें 8 लोगों की मौत हो गई और कई लोग घायल हो गए। हालांकि सरकार और मनसा देवी ट्रस्ट की ओर से मृतकों के परिजनों को राहत राशि की घोषणा भी की गई है लेकिन क्या इतना भर ही काफ़ी है उनके लिए जिन्होंने अपनों को खोया है।