
कावड़ यात्रा के बदलते स्वरूप पर चिंता जताई
हरिद्वार। ( तरुण अहलुवालिया ) आम नागरिक भी कांवड़ यात्रा के बदलते स्वरूप पर चिंता व्यक्त करते हैं। कहते हैं कि पिछले 50 सालों से वे इस यात्रा को देख रहे हैं, लेकिन अब इसका स्वरूप बदल गया है। पहले कांवड़िए नंगे पैर, थोड़े से जल और निजी सामान के साथ यात्रा पर निकलते थे, जो उनकी श्रद्धा और आस्था का प्रतीक था। लेकिन अब कांवड़िए अनावश्यक प्रदर्शन, उपद्रव और उत्पात मचाते हुए यात्रा पर निकल रहे हैं, जिससे सनातनियों की आस्था खंडित हो रही है। इतना ही नही सोशल मिडिया के माध्यमों से जानकारी मिलती रहती है कि कुछ कांवड़िये ना केवल लोगों से मारपीट करते हैं बल्कि उनकी गाड़ियों को भी क्षतिग्रस्त कर दे रहे हैं जोकि सरासर गलत है। ऐसा करके वे सनातन का ही अपमान कर रहे हैं क्योंकि जो व्यक्ति गंगाजल लेकर भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक करने के लिए निकला हो उसे तो वैसे की पूरी यात्रा के दौरान भोले कहकर ही सम्बोधित किया जाता है।
सरकारों से अनुरोध
उन्होंने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, और दिल्ली की सरकारों से विनम्र अनुरोध किया है कि वे वोट बैंक की खातिर इस आस्था को ठेस न पहुंचाएं। उन्होंने कहा कि सावन मास की कावड़ यात्रा उत्तराखंड की शान है और इससे करोड़ों आस्थावान लोग सनातन धर्म से प्रेरणा पाते हैं, इसलिए कांवड़ियों के भेष में छिपे ऐसे उपद्रवियों की पहचान कर उन पर अंकुश लगाया जाए।
सनातनियों का आह्वान
उन्होंने सभी सनातनियों से आह्वान किया है कि इस आस्था को बनाए रखने और खंडित न होने देने का प्रयास करें। उन्होंने कहा कि कावड़ यात्रा सिर्फ एक तीर्थयात्रा नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक एकता, सद्भाव और भाईचारे का प्रतीक भी है। कांवड़ मेले में उत्पात, उपद्रव और अनावश्यक प्रदर्शन का कोई स्थान नही है।